कसीदा ब यादगार समर्थ गुरूश्री महात्मा रामचंद्रजी महारज फ़तेगढ़
आफ़ताबे मारफ़त ऐ नुक्तादाने मारफ़त।
रहनुमाये सालिका ऐ जिस्मो जाँने मारफ़त ।।
तेरी हर तरज़े रहायश में थी शाने मारफ़त ।
हर अदा में थी तेरी नूरे जाँहाने मारफ़त ।।
हो चुका गो वस्ल फिर भी है समाधि पर वह नूर ।
जर्रे- जर्रे में है अब भी आनो-बाने मारफ़त ।।
हर तरफ़ देखा जो तूने मतलये जुल्मत-मुआब।
तूने बदली सरजमीनो आसमाँने मारफ़त ।।
बनके मूजिद इक सहज से मार्ग की डाली बिना।
इक नई बुनियाद पर रखा मकाने मारफ़त ।।
जुंबिशे अबरू में थी क्या जाने क्या-क्या आबोताब ।
जगमग उठा था जिससे आसमाने मारफ़त ।।
फूँक दी वह रूह जिसका फ़ैज है अब तक रवां ।
हर तरफ़ फूला फला है गुलिस्ताने मारफ़त ।।
हर तकल्लुम में थी तेरी प्रेम की मौजें रवां ।
हर इशारे में रवां थी दास्ताने मारफ़त ।।
दीदनी था सब्रो -इस्तकलाल का हुस्ने कमाल ।
तुझ पे थे सौ जां से कुर्बान शायकाने मारफ़त ।
सच हुआ जो कुछ कहा था तूने बर-वक्ते विसाल।
जाग उठेगा खुद ही बख्ते खुप्तगाने मारफ़त ।।
” मेरे परवानों की खातिर शमाँ जल उठेगी खुद ।
खुद ब खुद दौड़ेगे उस पर तालिबाने मारफ़त “।।
आज है फ़ज्लो करम से तेरे वह रोशन चिराग ।
रोशनी पाते हैं जिससे आशिकाने मारफ़त ।।
चश्मे हक़-बी देखले बिसमिल निगाहे शौक से।
फूलता फलता है कैसा बोसताने मारफ़त ।।
आफ़ताबे- सूर्यमारफ़त – ब्रह्म-ज्ञाननुक्तादाने – भेद जाननेवालारहनुमाये – राह बतानेवालासालिका – डूबे हुयेजिस्मो जाँने – शरीर व आत्मा
तरज़े – तरिका ढ़गरहायश – रहन सहननूर – प्रकाशजाँहाने – संसारवस्ल – योग(स्वर्गवास)जर्रे- जर्रे – कण-कण
आनो-बाने -शान शौकतमतलये – पूर्वी आकाशजुल्मत-मुआब – तमग्रसित(अंघेरा)मूजिद – आविष्कार कर्ताबिना -बुनियाद नीवजुंबिशे – हिलना
अबरू – माथे पर आँख का उपरि भाग, भौआबोताब – चमक दमकरूह – जागुतिफ़ैज -लाभ श्रोतरवां – जारीगुलिस्ताने – बगीचा
तकल्लुम -बातचीतमौजें – लहरेंदास्ताने -कहानीदीदनी – दर्शनीयसब्रो – संतोषइस्तकलाल – स्थिरता
हुस्ने – परिपूर्णत्व का सौंदर्यशायकाने – शौक रखनेवालेबर-वक्ते – अंतिम समय मेंबख्ते – भाग्यखुप्तगाने – सोनेवालेपरवानों – प्रेमी निछावर होने वाले
तालिबाने – इच्छुकहक़-बी – सत्य द्रुष्टाबोसताने – बाग

आफ़ताबे कन्नड